दिल्ली की एक अदालत ने उत्तर प्रदेश के विधायक कुलदीप सेंगर को आजीवन कारावास की जो सजा सुनाई है, वह कई मायनों में महत्वपूर्ण है। दुष्कर्म के मामलों को लेकर इन दिनों फिर से पूरे देश में चर्चा है, और ज्यादातर चर्चाओं में यही कहा जाता रहा है कि न्यायपालिका सजा देने में देरी करती है जिसकी वजह से ऐसे अपराधियों में डर खत्म हो जाता है। लेकिन शायद यह मामला ऐसा नहीं है। सारी जांच के बाद सीबीआई ने इस साल जुलाई में कुलदीप सेंगर के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दायर किया था। यानी इस लिहाज से देखें. तो अदालत ने कलदीप सेंगर के सामने अभी ऊपरी अदालतों में जाने का विकल्प है, लेकिन जिस तरह की तेजी दिल्ली की अदालत ने दिखाई है, हम उम्मीद करेंगे कि वही तेजी बाकी अदालतों में भी दिखाई देगी और यह सजा एक नजीर बनेगी। लेकिन हम जब छह महीने में अदालत द्वारा सजा का बात कर रहे हैं. तो हम यह भी ध्यान रखना होगा कि सेंगर ने दष्कर्म की यह वारदात जन 2017 में की थीयानी, उसके खिलाफ अंतिम चार्जशीट दायर होने में ही दो साल से ज्यादा का समय लग गया। यहां तक कि पलिस ने लबे समय तक दुष्कर्म की एफआईआर तो दर्ज नहीं ही की थी, पीड़िता को सबक सिखाने के लिए उसके पिता को झठे आरोपों में न सिर्फ जेल में डाल दिया गया, बल्कि उन्हें प्रताड़ित भी किया गया। मामले की रपट तभी लिखी गई, जब पीड़िता ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री निवास के आगे आत्मदाह का प्रयास किया। लेकिन इसके अगले ही दिन पुलिस हिरासत में उसके भी आसान नहीं थी. क्योंकि प्रदेश के कई आला अधिकारियों ने विधायक के खिलाफ कार्रवाई से इनकार कर दिया था। और अंत में, जिस महीने दिल्ली में चार्जशीट दायर हुई, उसी महीने पीड़िता के साथ सड़क दुर्घटना हई, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह उसे मारने की कोशिश हा था। इस घटना में पीड़िता के दो रिश्तेदार मारे गए और पीड़िता व उसके वकील घायल हए। यह मामला फिर से दुष्कर्म पीड़िता की सुरक्षा में ढील की ओर इशारा करता हैं। अच्छी बात यह है कि अदालत ने इसे समझा और सीबीआई को निदेश दिया है कि वह हर तीन महीने में पीड़िता पर खतरे और उसकी सुरक्षा की समीक्षा करेगी। उन्नाव की इस दुष्कर्म पीड़िता का मामला बताता हैं कि अदालत अगर तजा स काम करती भी है, तब भी बाकी व्यवस्थागत बाधाएं मामले को टालती हैं। खासकर जब मामला किसी प्रभावशाली व्यक्ति का हो। कुलदीप सेंगर सत्ताधारी पाटी से जुड़े थे, इसलिए पूरी व्यवस्था का रवया पड़ता स असहयाग का था। जब बहुत ज्यादा हंगामा हो गया, तभी भाजपा ने उन्हें पार्टी से निलंबित किया। पिछले आम चुनाव के समय एक प्रभावशाली नेता और उम्मीदवार उनसे मिलने जेल तक गए थे। यह पूरा मामला बताता है कि प्रभावशाली लोगों के खिलाफ दुष्कर्म का मामला चलाना अभी भी कितना कठिन है, क्याकि हमारा बहुत सारा व्यवस्थाएं पीड़ित के साथ नहीं, प्रभावशाली के साथ खड़ी होती है। क्या अब हम यह उम्मीद करें कि अगली कार्रवाई उन लोगों के खिलाफ होगा, जिन्होंने पीड़िता से असहयोग किया? प्रभावशाली लोगों के दुश्चक्र को तोड़ने के लिए यह बहुत जरूरी है।
दुष्कर्म को सजा