झारखंड के नतीजे

कई बार चुनाव नतीजों के साथ ही महत्वपूर्ण यह भी हो जाता है कि वे नतीजे आपको राजनीति के किस मोड़ पर मिले हैं। इसलिए झारखंड के विधानसभा चुनाव के नतीजों की कई तरह से व्याख्या की जा सकती है। ये चुनाव काफी हद तक नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप और नागरिकता संशोधन कानून पर चल रहे विमर्श के दौरान हुए हैं। काफी हद तक इसलिए कि पांच चरणों में हुए इस चुनाव में जब मतदान के दो चरण बीत चुके थे, तो नागरिकता संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश हुआ। यानी मतदान के तीन चरण तब हुए, जब पूरा देश नागरिकता कानून के हंगामे से गुजर रहा था। निस्संदेह इसका कुछ असर तो झारखंड के जनमानस पर भी पड़ा ही होगाहालांकि सिर्फ इतने से ही यह नतीजा नहीं निकाला जा सकता कि नए नागरिकता प्रावधानों को झारखंड की जनता ने नकार दिया है, फिर भी एक हद तक इसको केंद्र सरकार की राजनीतिक हार करार दिया जा सकता है। नागरिकता कानून पास होने के बाद झारखंड से आई रिपोर्टों में यह बताया गया था कि वहां यह कानून चुनावी मुद्दा नहीं बन सका है। इससे एक नतीजा यह निकाला जा सकता है कि यह कानून झारखंड में मतदाताओं को लुभाने में नाकाम रहा। कारण जो हो, झारखंड के नतीजे से सरकार और विपक्ष, दोनों को नागरिकता संशोधन कानून की सीमाएं साफ तौर पर समझ में आ गई होंगी। दूसरा तरीका है कि इन चुनाव नतीजों को स्थानीय राजनीति के समीकरणों से समझने की कोशिश की जाएइस बार के मतदान को हम राज्य स्तर की सत्ता-विरोधी वोटिंग भी कह सकते हैं। यह सत्ता विरोधी मतदान यानी एंटी इनकम्बेंसी कई स्तर पर होती है, सरकार के स्तर पर भी और स्थानीय विधायक के स्तर पर भी। खासकर यह देखते हुए कि कुछ महीने पहले जब आम चुनाव हुए थे, तो इसी झारखंड के इन्हीं मतदाताओं ने भाजपा की झोली वोटों से भर दी थी। वैसे पिछले काफी समय से झारखंड से आने वाली कई खबरें राज्य सरकार की कम होती लोकप्रियता का संकेत कर रही थींआदिवासी बनाम गैर आदिवासी का मुद्दा भी रह-रहकर सामने आ रहा था। यह भी सच है कि गठबंधन के इस दौर में भाजपा लगभग अकेले चुनाव लड़ रही थी और विरोधी लगभग एकजुट थे। भाजपा के भीतर का असंतोष और बगावत भी बहुत स्पष्ट थे। यह भी कहा गया कि भाजपा को राज्य स्तरीय राजनीत से ज्यादा अपने राष्ट्रीय नेतृत्व के चमत्कारी स्वरूप पर भरोसा है। यानी राज्य स्तर पर ऐसा बहुत कुछ था, जिससे मतदाता इधर या उधर वोट देने का मन बना पाएं, और शायद अंतिम नतीजों में राज्य के इन्हीं मुद्दों ने अपनी भूमिका निभाई। ये वही कारण हैं, जिनके चलते पिछले कुछ महीनों में भाजपा को एक के बाद दूसरे राज्यों की सत्ता से हाथ धोने पड़े हैं। इन नतीजों ने एक बात साफ कर दी है कि राज्यों में दीर्घजीविता के लिए भाजपा ने डबल इंजन सरकार की जो अवधारणा दी थी, उसे जनता ने स्वीकार नहीं किया हैबाकी राज्यों की ही तरह झारखंड में भी भाजपा ने डबल इंजन सरकार को सबसे बड़ा मुद्दा बनाया था। झारखंड के नतीजों ने बता दिया कि जनता के कानों में इस तरह के मंत्र फूककर उसे मुग्ध नहीं किया जा सकता। जनता को अंत में जो चाहिए, वह विकास है। जो जीते हैं, उन्हें इस संदेश को याद रखना चाहिए।